Sunday, January 9, 2011

sukoon

हर कोई
खरीदना चाहता है
दो पल सुकून
पर बिकता नहीं किसी दुकान में
दो पल सुकून
इस खरीद फारोक्थ  की आप धापी में `
हम खो देतें हैं
अपनी जिन्दगी से
रहा सहा सुकून 

Wednesday, January 5, 2011

manzil

अकेला चला था
जिस मोड़ से में
अपनी मंजिल की तलाश में
फिर मिले कुछ
मुसाफिर
चल दिए फिर वो भी
मेरे साथ
बनके मेरा कारवां
मुझे गुमान था की
रहूँगा में हमेशा
अपने कारवां के साथ
पर
आज एक एक मुसाफिर
छूटता गया मुझसे
और
रह गया में अकेला फिर से
शायद
में भूल गया था
की उन सबकी मंजिल
मेरी मंजिल नहीं थी 

Wazood

 लोगों  की इस भीड़ में खोया सा रहता हूँ  फिर भी में अक्सर तनहा तनहा रहता हूँ  दुनियादारी क्या चीज़ है मुझे समझ नहीं आती  मेरी ये आवारगी मुझ को...