Friday, December 21, 2012

aks

वक़्त के आयने से झांकते देखा है तुम को 
तुम शायद आज भी एक अक्स हो मेरे माज़ी  का 
रास्ता दूर तलक सूना ही दीखता है 
समुन्दर की लहरों सी तन्हाई उफनती है 
पतझड़ और सावन बीत रहे हैं यूँ ही 
एक पेड़ अपनी ज़मीन आज भी तलाश रहा है 
जिस दिन पेड़ गिरेगा ज़मीन की गोद में 
आयने टूटेंगे पर आवाज़ न होगी तब 

Tuesday, June 12, 2012

fursat ke lamhe

तेरी याद और यह फुर्सत के लम्हे
वक़्त की शाखों पर हें  ठहरे ठहरे
तनहा है बिस्तर और सिलवटें
कुण्डी की आहट से हैं सहमे सहमे
खिड़की के बहार हैं बारिश की बूँदें
मेरे भीतर हैं समुन्दर गहरे
तुम्हारे बिन यह फुर्सत भी है
एक अधूरी कविता की अनकही पंक्तियाँ
मैंने कभी कहा नहीं पर
अब कह रहा हूँ
मुझे इन फुर्सत के लम्हों में
तुम याद न आया करो .


Thursday, March 15, 2012

samundar

ज़िन्दगी के इस समुन्दर में
कभी सुख की लहरें हैं
तो
कभी दुःख का ज्वार भाटा है 
कभी है ख़ामोशी की आहट
और कभी आ जाती है सुनामी
ज़िन्दगी में प्यार है
तो
कश्ती  को किनारा मिल ही जाता है
तुम ही खिवईया  हो इस कश्ती के
तुम ही हो केंद्र बिंदु हो इस समुन्दर के
अब तुम ही संभालो








Wazood

 लोगों  की इस भीड़ में खोया सा रहता हूँ  फिर भी में अक्सर तनहा तनहा रहता हूँ  दुनियादारी क्या चीज़ है मुझे समझ नहीं आती  मेरी ये आवारगी मुझ को...