तेरी याद और यह फुर्सत के लम्हे
वक़्त की शाखों पर हें ठहरे ठहरे
तनहा है बिस्तर और सिलवटें
कुण्डी की आहट से हैं सहमे सहमे
खिड़की के बहार हैं बारिश की बूँदें
मेरे भीतर हैं समुन्दर गहरे
तुम्हारे बिन यह फुर्सत भी है
एक अधूरी कविता की अनकही पंक्तियाँ
मैंने कभी कहा नहीं पर
अब कह रहा हूँ
मुझे इन फुर्सत के लम्हों में
तुम याद न आया करो .
वक़्त की शाखों पर हें ठहरे ठहरे
तनहा है बिस्तर और सिलवटें
कुण्डी की आहट से हैं सहमे सहमे
खिड़की के बहार हैं बारिश की बूँदें
मेरे भीतर हैं समुन्दर गहरे
तुम्हारे बिन यह फुर्सत भी है
एक अधूरी कविता की अनकही पंक्तियाँ
मैंने कभी कहा नहीं पर
अब कह रहा हूँ
मुझे इन फुर्सत के लम्हों में
तुम याद न आया करो .