Friday, December 21, 2012

aks

वक़्त के आयने से झांकते देखा है तुम को 
तुम शायद आज भी एक अक्स हो मेरे माज़ी  का 
रास्ता दूर तलक सूना ही दीखता है 
समुन्दर की लहरों सी तन्हाई उफनती है 
पतझड़ और सावन बीत रहे हैं यूँ ही 
एक पेड़ अपनी ज़मीन आज भी तलाश रहा है 
जिस दिन पेड़ गिरेगा ज़मीन की गोद में 
आयने टूटेंगे पर आवाज़ न होगी तब 

Wazood

 लोगों  की इस भीड़ में खोया सा रहता हूँ  फिर भी में अक्सर तनहा तनहा रहता हूँ  दुनियादारी क्या चीज़ है मुझे समझ नहीं आती  मेरी ये आवारगी मुझ को...