तुम्हें याद तो नहीं करता में
पर भूल भी नहीं सकता में
मेरा माज़ी मुझको हर रोज़ मिलता है
दूर छोड़ आया था जिसे एक रोज़ तनहा में
मेरे दरवाजे पर कभी तो दस्तक दोगे तुम
हर आहट पर दरवाज़ा खोला है रातों में
उम्र तो गुज़र रही है रास्ता तकते
आंखों में अभी बाकी है अभी एक अधूरा मैं
जीवन कि बगिया यूँ ही खिलती रहेगी
लुका छुपी खेलेंगे यूँही
तुम और में.
पर भूल भी नहीं सकता में
मेरा माज़ी मुझको हर रोज़ मिलता है
दूर छोड़ आया था जिसे एक रोज़ तनहा में
मेरे दरवाजे पर कभी तो दस्तक दोगे तुम
हर आहट पर दरवाज़ा खोला है रातों में
उम्र तो गुज़र रही है रास्ता तकते
आंखों में अभी बाकी है अभी एक अधूरा मैं
जीवन कि बगिया यूँ ही खिलती रहेगी
लुका छुपी खेलेंगे यूँही
तुम और में.