Tuesday, April 1, 2014

Ek Adhoora Mein

तुम्हें  याद  तो नहीं करता में
पर भूल भी नहीं सकता में
मेरा माज़ी मुझको हर रोज़ मिलता है
दूर छोड़ आया था जिसे एक रोज़ तनहा में
मेरे दरवाजे पर कभी तो दस्तक दोगे तुम
हर आहट पर दरवाज़ा खोला है रातों में
उम्र तो गुज़र रही है रास्ता तकते
आंखों में अभी बाकी है अभी एक अधूरा मैं
जीवन कि बगिया यूँ ही खिलती रहेगी
लुका छुपी खेलेंगे यूँही
तुम और में.

Wazood

 लोगों  की इस भीड़ में खोया सा रहता हूँ  फिर भी में अक्सर तनहा तनहा रहता हूँ  दुनियादारी क्या चीज़ है मुझे समझ नहीं आती  मेरी ये आवारगी मुझ को...