Saturday, March 12, 2011

sadak

ये आवारा सी दौड़ती भागती सडकें 
लुकती  ,   छुपती  ,सहमी, सिमटी सी सडकें 
ठिठुरती , भीगती ,दहकती , दमकती सडकें
एक अंतहीन मकडजाल सी ये सडकें
और 
इन सड़कों पर 
परछाइयों  को  पकड़ने के लिए भागते हुए लोग 
 परछाइयों में सपने बुनते हुए ये लोग 
न जाने चले जाते हैं कहाँ 
और में मूक दर्शक सा सदियों से 
ये तमाशा देख रहा हूँ  

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