प्यास भी अजीब होती है
कभी एक बूँद भी बहुत होती है
तो कभी सागर भी कम पड़ता है
और कभी होती है
गर्म तवे पर फुदकती पानी की कुछ बूंदों जैसी
कभी कोई आधी अधूरी कहानी जैसी होती है यह प्यास
रात को कभी यूँ जगा देती है प्यास
एक गहरा शून्य होता है आस पास
प्यास डर भी है और ज़रूरत भी
मैंने देखा है प्यास को रोते हुए
उन आँखों से जिन को सावन सूखा मिला
पर केक्टस को क्या कहें
वो प्यास को भूल चूका था
और प्याले की किस्मत
भरे होने पर भी वो प्यासा था