Friday, April 8, 2011

ek din aaur

एक दिन और बीता जिन्दगी का बस यूं ही 
नयी सुबह की तलाश कल फिर होगी 
नए पदचिन्ह , नयी मंजिल की तलाश 
और जीवन जीता एक ख्वाब 
थोड़ा सा बह गया बस यूं ही 
मैंने समेटना चाहा हर एक लम्हा 
पर रेत के महल सा ढह गया बस यूं ही    
एक दिन और बीता जिन्दगी का बस यूं ही 

रात को थक कर जब ख्वाब सो जाता है 
दिन का उजाला फिर उम्मीद जगाता है 
और फिर में जीता हूँ हर पल ख्वाब को 
और शाम आने पर 
सूरज ढलता है हर रोज यूं ही 
एक नए सवेरे की फिर होती है शुरुआत  हर रोज यूं ही 
एक दिन और बीता जिन्दगी का बस यूं ही .

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