Monday, December 15, 2014

Tum

सुबह के घने कोहरे  में
चाय की गर्म चुस्की सी
तुम
बादल की गोद से निकली
एक  नन्ही बूँद सी
तुम
किताबों की अलमारी से निकली
एक पुरानी चिट्ठी
तुम
दरवाज़े की जानी पहचानी सी
चुलबुली सी दस्तक
तुम
जिसे देखने को तरसता सावन
वो सुहाना मंजर
तुम
मेरे मन के उपवन में
खिलती  हुआ रजनीगंधा 
तुम
मेरे ह्रदय के धरातल पर
ठहरी हुई सी झील
तुम
संसार के स्वरुप में
चेतना की तस्वीर
तुम

Monday, June 9, 2014

Tanhaaye

उसकी आँखों में
इंतज़ार था
एहसास था
मुस्कुराहट थी
इतिहास था
लम्हे थे
चाहत थी
उम्मीद थी पलटकर देखने की
दीवानापन था
जुनून था
सपने थे
जीवन था
चेतना थी
सावन था
रातें थी
बादलों के घूँघट से निहारती चाँदनी थी
 और
मेरी आँखों में
सिर्फ़ तन्हाई ...

Tuesday, April 1, 2014

Ek Adhoora Mein

तुम्हें  याद  तो नहीं करता में
पर भूल भी नहीं सकता में
मेरा माज़ी मुझको हर रोज़ मिलता है
दूर छोड़ आया था जिसे एक रोज़ तनहा में
मेरे दरवाजे पर कभी तो दस्तक दोगे तुम
हर आहट पर दरवाज़ा खोला है रातों में
उम्र तो गुज़र रही है रास्ता तकते
आंखों में अभी बाकी है अभी एक अधूरा मैं
जीवन कि बगिया यूँ ही खिलती रहेगी
लुका छुपी खेलेंगे यूँही
तुम और में.

Wazood

 लोगों  की इस भीड़ में खोया सा रहता हूँ  फिर भी में अक्सर तनहा तनहा रहता हूँ  दुनियादारी क्या चीज़ है मुझे समझ नहीं आती  मेरी ये आवारगी मुझ को...