सुबह के घने कोहरे में
चाय की गर्म चुस्की सी
तुम
बादल की गोद से निकली
एक नन्ही बूँद सी
तुम
किताबों की अलमारी से निकली
एक पुरानी चिट्ठी
तुम
दरवाज़े की जानी पहचानी सी
चुलबुली सी दस्तक
तुम
जिसे देखने को तरसता सावन
वो सुहाना मंजर
तुम
मेरे मन के उपवन में
खिलती हुआ रजनीगंधा
तुम
मेरे ह्रदय के धरातल पर
ठहरी हुई सी झील
तुम
संसार के स्वरुप में
चेतना की तस्वीर
तुम
चाय की गर्म चुस्की सी
तुम
बादल की गोद से निकली
एक नन्ही बूँद सी
तुम
किताबों की अलमारी से निकली
एक पुरानी चिट्ठी
तुम
दरवाज़े की जानी पहचानी सी
चुलबुली सी दस्तक
तुम
जिसे देखने को तरसता सावन
वो सुहाना मंजर
तुम
मेरे मन के उपवन में
खिलती हुआ रजनीगंधा
तुम
मेरे ह्रदय के धरातल पर
ठहरी हुई सी झील
तुम
संसार के स्वरुप में
चेतना की तस्वीर
तुम
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