Monday, December 15, 2014

Tum

सुबह के घने कोहरे  में
चाय की गर्म चुस्की सी
तुम
बादल की गोद से निकली
एक  नन्ही बूँद सी
तुम
किताबों की अलमारी से निकली
एक पुरानी चिट्ठी
तुम
दरवाज़े की जानी पहचानी सी
चुलबुली सी दस्तक
तुम
जिसे देखने को तरसता सावन
वो सुहाना मंजर
तुम
मेरे मन के उपवन में
खिलती  हुआ रजनीगंधा 
तुम
मेरे ह्रदय के धरातल पर
ठहरी हुई सी झील
तुम
संसार के स्वरुप में
चेतना की तस्वीर
तुम

Wazood

 लोगों  की इस भीड़ में खोया सा रहता हूँ  फिर भी में अक्सर तनहा तनहा रहता हूँ  दुनियादारी क्या चीज़ है मुझे समझ नहीं आती  मेरी ये आवारगी मुझ को...