Friday, January 13, 2017

Zindagi

कम्बख़्त ज़िंदगी
तेरी अदा ने रुला दिया
जो नहीं भूलना था
वो भी भुला दिया
दर्द भी तू
दवा भी तू
गिला  भी तू
शिकवा भी तू
तू ही है मेरी बेचैनी
और मेरा सुकून भी तू
तू वजह है मेरी आवारगी की
मेरी तन्हाई का सबब भी तू
तू ही तलाश है ज़िंदगी
तुझसे ही आस है ज़िंदगी
तुझको आईना हम ने बना लिया
जो नहीं भूलना था
वो भी भुला दिया

Wazood

 लोगों  की इस भीड़ में खोया सा रहता हूँ  फिर भी में अक्सर तनहा तनहा रहता हूँ  दुनियादारी क्या चीज़ है मुझे समझ नहीं आती  मेरी ये आवारगी मुझ को...