Tuesday, October 17, 2017

Prem

प्रेम नहीं है काव्य
 भाषा और संवाद
प्रेम  नहीं है बंधन
रिश्तों का मोहताज
प्रेम नहीं है लेन देन
वादों का व्यापार
प्रेम नहीं है जाति
धर्म समाज और रिवाज
प्रेम है बस समर्पण
प्रेम है बस एहसास
सिर्फ एहसास

Thursday, October 12, 2017

tum ho

मेरी लिखी  पंक्तियोँ के हर अक्षर की चेतना तुम हो
हर शब्द में छुपी हुई वेदना तुम हो
तुम से होता है हर अनदेखे स्वप्न का अभिनन्दन
हर पल  को जीवन देने वाली  प्रेरणा तुम हो

Wazood

 लोगों  की इस भीड़ में खोया सा रहता हूँ  फिर भी में अक्सर तनहा तनहा रहता हूँ  दुनियादारी क्या चीज़ है मुझे समझ नहीं आती  मेरी ये आवारगी मुझ को...