Monday, January 21, 2019

Tum Hi Batlao

तुम चाय की चुस्की सी
नींद में आई सुस्ती सी
कोहरे की नर्म चादर सी
ओस की नन्ही बूँद सी
सुबह की ठंडी धूप सी
तवे पे फुदकती बूँद सी
पानी पर ठहरी नाव सी
सर्दी में जलती आग सी
तुम कल सी और आज सी
चिड़ियों के कलरव सी
साँस की महक सी
अंधेरे से झाँकति  खिड़की सी
दरवाजे की जानी पहचानी आहट सी
मेरी कलम की स्याही सी
किसी कविता की पंक्ति सी
तुम कुछ मुझ सी कुछ अपनी सी
तुम्हें कैसे लिखूं
अब तुम ही बतलाओ

Wazood

 लोगों  की इस भीड़ में खोया सा रहता हूँ  फिर भी में अक्सर तनहा तनहा रहता हूँ  दुनियादारी क्या चीज़ है मुझे समझ नहीं आती  मेरी ये आवारगी मुझ को...