तुम चाय की चुस्की सी
नींद में आई सुस्ती सी
कोहरे की नर्म चादर सी
ओस की नन्ही बूँद सी
सुबह की ठंडी धूप सी
तवे पे फुदकती बूँद सी
पानी पर ठहरी नाव सी
सर्दी में जलती आग सी
तुम कल सी और आज सी
चिड़ियों के कलरव सी
साँस की महक सी
अंधेरे से झाँकति खिड़की सी
दरवाजे की जानी पहचानी आहट सी
मेरी कलम की स्याही सी
किसी कविता की पंक्ति सी
तुम कुछ मुझ सी कुछ अपनी सी
तुम्हें कैसे लिखूं
अब तुम ही बतलाओ
नींद में आई सुस्ती सी
कोहरे की नर्म चादर सी
ओस की नन्ही बूँद सी
सुबह की ठंडी धूप सी
तवे पे फुदकती बूँद सी
पानी पर ठहरी नाव सी
सर्दी में जलती आग सी
तुम कल सी और आज सी
चिड़ियों के कलरव सी
साँस की महक सी
अंधेरे से झाँकति खिड़की सी
दरवाजे की जानी पहचानी आहट सी
मेरी कलम की स्याही सी
किसी कविता की पंक्ति सी
तुम कुछ मुझ सी कुछ अपनी सी
तुम्हें कैसे लिखूं
अब तुम ही बतलाओ
No comments:
Post a Comment