Wednesday, September 28, 2022

Wazood

 लोगों  की इस भीड़ में खोया सा रहता हूँ 

फिर भी में अक्सर तनहा तनहा रहता हूँ 

दुनियादारी क्या चीज़ है मुझे समझ नहीं आती 

मेरी ये आवारगी मुझ को मुझ से है मिलाती 

तुम मुझे प्यार करो या हिकारत करो मुझसे 

मेरे वजूद ने मुझे अपने पर ऐतबार सिखाया है 

    

Monday, March 28, 2022

 उसने कुछ कहना चाहा 

पर उससे कुछ कहा न गया 

शब्द खामोश थे और 

आँखें बोल रही थीं 

अनकही सी प्यास 

आँखों से बह रही थी 

परछाई से परछाई 

अलविदा कह रही थी 

फिर कब और कहाँ ?

स्मृतियों की वेदना 

जीवन यही है।।।। 


Saturday, March 26, 2022

Namak

 एक वो दौर था 

जब हवाओं में  आवारगी के झोंके 

आ कर गले लगते थे 

फूलों के रंग गलों के गुलाल हुआ करते थे 

तारों को एक टक निहारा करते थे 

आयने में किसी और को  पाया करते थे 

छत की मुंडेर पर पतंग उड़ाते वक़्त 

किसी की मुस्कराहट को निहारा करते थे 

बारिश की बूंदो की अठखेलियां तन और मन 

दोनों को झकझोर दिया करती थीं 

एग्जाम के दिनों में भी 

कॉमिक्स का लुत्फ़ उठाया करते थे 

परांठे और अचार को 

इंटरवेल से पहले ही खाया करते थे 

आम के बगीचे से कच्चे आम तोड़कर 

नमक लगा कर खाया करते थे 

ये वो दौर था जब नमक से परहेज नहीं होता था 

नमक ज़िन्दगी का हिस्सा होता था 

या यूँ कहें ज़िन्दगी नमकीन होती थी 

ज़िन्दगी का नमक इश्क़ होता है 

जीवन की आप धापी में 

ये नमक कम हो रहा है 

या कहीं खो रहा है 

इसी से जिंदगी में स्वाद आता है 

इस इंटरनेट के दौर में 

इस स्वाद को बरक़रार रखना है।  


Wazood

 लोगों  की इस भीड़ में खोया सा रहता हूँ  फिर भी में अक्सर तनहा तनहा रहता हूँ  दुनियादारी क्या चीज़ है मुझे समझ नहीं आती  मेरी ये आवारगी मुझ को...