एक वो दौर था
जब हवाओं में आवारगी के झोंके
आ कर गले लगते थे
फूलों के रंग गलों के गुलाल हुआ करते थे
तारों को एक टक निहारा करते थे
आयने में किसी और को पाया करते थे
छत की मुंडेर पर पतंग उड़ाते वक़्त
किसी की मुस्कराहट को निहारा करते थे
बारिश की बूंदो की अठखेलियां तन और मन
दोनों को झकझोर दिया करती थीं
एग्जाम के दिनों में भी
कॉमिक्स का लुत्फ़ उठाया करते थे
परांठे और अचार को
इंटरवेल से पहले ही खाया करते थे
आम के बगीचे से कच्चे आम तोड़कर
नमक लगा कर खाया करते थे
ये वो दौर था जब नमक से परहेज नहीं होता था
नमक ज़िन्दगी का हिस्सा होता था
या यूँ कहें ज़िन्दगी नमकीन होती थी
ज़िन्दगी का नमक इश्क़ होता है
जीवन की आप धापी में
ये नमक कम हो रहा है
या कहीं खो रहा है
इसी से जिंदगी में स्वाद आता है
इस इंटरनेट के दौर में
इस स्वाद को बरक़रार रखना है।
No comments:
Post a Comment