उसने कुछ कहना चाहा
पर उससे कुछ कहा न गया
शब्द खामोश थे और
आँखें बोल रही थीं
अनकही सी प्यास
आँखों से बह रही थी
परछाई से परछाई
अलविदा कह रही थी
फिर कब और कहाँ ?
स्मृतियों की वेदना
जीवन यही है।।।।
Ghar is a place where dreams live for those who lives in ghar Tumhara Dil hi hamara Ghar Hai
एक वो दौर था
जब हवाओं में आवारगी के झोंके
आ कर गले लगते थे
फूलों के रंग गलों के गुलाल हुआ करते थे
तारों को एक टक निहारा करते थे
आयने में किसी और को पाया करते थे
छत की मुंडेर पर पतंग उड़ाते वक़्त
किसी की मुस्कराहट को निहारा करते थे
बारिश की बूंदो की अठखेलियां तन और मन
दोनों को झकझोर दिया करती थीं
एग्जाम के दिनों में भी
कॉमिक्स का लुत्फ़ उठाया करते थे
परांठे और अचार को
इंटरवेल से पहले ही खाया करते थे
आम के बगीचे से कच्चे आम तोड़कर
नमक लगा कर खाया करते थे
ये वो दौर था जब नमक से परहेज नहीं होता था
नमक ज़िन्दगी का हिस्सा होता था
या यूँ कहें ज़िन्दगी नमकीन होती थी
ज़िन्दगी का नमक इश्क़ होता है
जीवन की आप धापी में
ये नमक कम हो रहा है
या कहीं खो रहा है
इसी से जिंदगी में स्वाद आता है
इस इंटरनेट के दौर में
इस स्वाद को बरक़रार रखना है।
लोगों की इस भीड़ में खोया सा रहता हूँ फिर भी में अक्सर तनहा तनहा रहता हूँ दुनियादारी क्या चीज़ है मुझे समझ नहीं आती मेरी ये आवारगी मुझ को...