Friday, October 22, 2010

antardwand

अंतर्द्वंद
अन्दर भी और बहार भी
चाहिए क्या
बन्दूक या बांसुरी
बाहर भी खींचातानी
अन्दर भी रस्साकसी
किससे लड़ें
किससे बचें
किसे छोड़ें
किसे अपनाएँ
मेरी चेतना है
कुरुछेत्र की समरस्थली
में ही कौरव और पांडव भी
मैंने वध  किया है  स्वयं अपना
और शस्त्र भी में हूँ
कभी में लड़ा हूँ रोटी के लिये
कभी अपने असतित्व के लिए
पर
इस युद्ध में
विजय और पराजय में
होता रहा
अंतर्द्वंद             

Tuesday, October 19, 2010

uninvited

Whenever I close my eyes
some grains of dry sand
fly in the air
and takes away with them
time of infinite emotions.
these grains sometimes
wet with tears of uninvited nostalgic moments.
I never know
the heat of fire
inside the volcano
which is inside the ocean of my heart.
I want to sleep
for wake up in the
morning for seeing
the uninvited.

Monday, October 4, 2010

Boat

यादों के समुन्दर में
लहरों  पे सवार होकर
एक किश्ती दूर से
नज़र आती है
जिसमें पता हूँ
अपने आप को
और
तुमको
फिर
उस किश्ती में
बुने जाते हैं
कुछ सपने
कहे सुने जाते हैं
शिकवे , गिले
और
फिर
किश्ती सफ़र तय करती है
बढ़ती रहती है
वक़्त हाथों से रेत की तरह
फिसलने लगता है
किश्ती को समुन्दर में
फ़िक्र ही नहीं
की
जाना कहाँ है
क्योंकि
उसे भरोसा है
वो भटकेगी नहीं
कहीं न कहीं
किनारा मिलेगा उसे
फिर
तेज़ आंधी आती है
और
किश्ती
ओझल हो जाती है
चली जाती है
नज़रों से दूर
में कहीं दूर भटकता रहता हूँ
अकेला
यादों के समुन्दर में
पर
उम्मीद है मुझे
मिलेगा एक दिन
किनारा
उस किश्ती को भी
जिसे तलाश है
सदियों से
उसकी.
         

Friday, October 1, 2010

dry leaves

सूखे पत्ते
जिन्हें छोड़ दिया
उस वृक्ष ने
जिसको कभी
सजाया था उन्होंने
जब थे हरे भरे
और आकर्षक
तब तक वृक्ष ने
उन्हें लगाया ह्रदय से
जब
खो बैठे वो
अपना सोंदर्य
अपना आकर्षण
तब छोड़ दिया उन्हें
निकाल दिया ह्रदय से
अपने जीवन से
सूखे पत्तों की
नियति यही है
आज पड़े हैं
वो धरा पे
आज हर एक छोटा बड़ा
जीव जंतु
निकल जाता है
रोंदकर उन्हें
अपने पेरों तले
तब करते हैं
वो रुदन
और
बताते हैं उन्हें
की   
एक दिन सभी को
अलग होना होता है
और
मिलना होता है
मिट्टी से 
वही शरण देती है
अंत में सबको.  

Wazood

 लोगों  की इस भीड़ में खोया सा रहता हूँ  फिर भी में अक्सर तनहा तनहा रहता हूँ  दुनियादारी क्या चीज़ है मुझे समझ नहीं आती  मेरी ये आवारगी मुझ को...