अंतर्द्वंद
अन्दर भी और बहार भी
चाहिए क्या
बन्दूक या बांसुरी
बाहर भी खींचातानी
अन्दर भी रस्साकसी
किससे लड़ें
किससे बचें
किसे छोड़ें
किसे अपनाएँ
मेरी चेतना है
कुरुछेत्र की समरस्थली
में ही कौरव और पांडव भी
मैंने वध किया है स्वयं अपना
और शस्त्र भी में हूँ
कभी में लड़ा हूँ रोटी के लिये
कभी अपने असतित्व के लिए
पर
इस युद्ध में
विजय और पराजय में
होता रहा
अंतर्द्वंद
Ghar is a place where dreams live for those who lives in ghar Tumhara Dil hi hamara Ghar Hai
Friday, October 22, 2010
Tuesday, October 19, 2010
uninvited
Whenever I close my eyes
some grains of dry sand
fly in the air
and takes away with them
time of infinite emotions.
these grains sometimes
wet with tears of uninvited nostalgic moments.
I never know
the heat of fire
inside the volcano
which is inside the ocean of my heart.
I want to sleep
for wake up in the
morning for seeing
the uninvited.
some grains of dry sand
fly in the air
and takes away with them
time of infinite emotions.
these grains sometimes
wet with tears of uninvited nostalgic moments.
I never know
the heat of fire
inside the volcano
which is inside the ocean of my heart.
I want to sleep
for wake up in the
morning for seeing
the uninvited.
Monday, October 4, 2010
Boat
यादों के समुन्दर में
लहरों पे सवार होकर
एक किश्ती दूर से
नज़र आती है
जिसमें पता हूँ
अपने आप को
और
तुमको
फिर
उस किश्ती में
बुने जाते हैं
कुछ सपने
कहे सुने जाते हैं
शिकवे , गिले
और
फिर
किश्ती सफ़र तय करती है
बढ़ती रहती है
वक़्त हाथों से रेत की तरह
फिसलने लगता है
किश्ती को समुन्दर में
फ़िक्र ही नहीं
की
जाना कहाँ है
क्योंकि
उसे भरोसा है
वो भटकेगी नहीं
कहीं न कहीं
किनारा मिलेगा उसे
फिर
तेज़ आंधी आती है
और
किश्ती
ओझल हो जाती है
चली जाती है
नज़रों से दूर
में कहीं दूर भटकता रहता हूँ
अकेला
यादों के समुन्दर में
पर
उम्मीद है मुझे
मिलेगा एक दिन
किनारा
उस किश्ती को भी
जिसे तलाश है
सदियों से
उसकी.
लहरों पे सवार होकर
एक किश्ती दूर से
नज़र आती है
जिसमें पता हूँ
अपने आप को
और
तुमको
फिर
उस किश्ती में
बुने जाते हैं
कुछ सपने
कहे सुने जाते हैं
शिकवे , गिले
और
फिर
किश्ती सफ़र तय करती है
बढ़ती रहती है
वक़्त हाथों से रेत की तरह
फिसलने लगता है
किश्ती को समुन्दर में
फ़िक्र ही नहीं
की
जाना कहाँ है
क्योंकि
उसे भरोसा है
वो भटकेगी नहीं
कहीं न कहीं
किनारा मिलेगा उसे
फिर
तेज़ आंधी आती है
और
किश्ती
ओझल हो जाती है
चली जाती है
नज़रों से दूर
में कहीं दूर भटकता रहता हूँ
अकेला
यादों के समुन्दर में
पर
उम्मीद है मुझे
मिलेगा एक दिन
किनारा
उस किश्ती को भी
जिसे तलाश है
सदियों से
उसकी.
Friday, October 1, 2010
dry leaves
सूखे पत्ते
जिन्हें छोड़ दिया
उस वृक्ष ने
जिसको कभी
सजाया था उन्होंने
जब थे हरे भरे
और आकर्षक
तब तक वृक्ष ने
उन्हें लगाया ह्रदय से
जब
खो बैठे वो
अपना सोंदर्य
अपना आकर्षण
तब छोड़ दिया उन्हें
निकाल दिया ह्रदय से
अपने जीवन से
सूखे पत्तों की
नियति यही है
आज पड़े हैं
वो धरा पे
आज हर एक छोटा बड़ा
जीव जंतु
निकल जाता है
रोंदकर उन्हें
अपने पेरों तले
तब करते हैं
वो रुदन
और
बताते हैं उन्हें
की
एक दिन सभी को
अलग होना होता है
और
मिलना होता है
मिट्टी से
वही शरण देती है
अंत में सबको.
जिन्हें छोड़ दिया
उस वृक्ष ने
जिसको कभी
सजाया था उन्होंने
जब थे हरे भरे
और आकर्षक
तब तक वृक्ष ने
उन्हें लगाया ह्रदय से
जब
खो बैठे वो
अपना सोंदर्य
अपना आकर्षण
तब छोड़ दिया उन्हें
निकाल दिया ह्रदय से
अपने जीवन से
सूखे पत्तों की
नियति यही है
आज पड़े हैं
वो धरा पे
आज हर एक छोटा बड़ा
जीव जंतु
निकल जाता है
रोंदकर उन्हें
अपने पेरों तले
तब करते हैं
वो रुदन
और
बताते हैं उन्हें
की
एक दिन सभी को
अलग होना होता है
और
मिलना होता है
मिट्टी से
वही शरण देती है
अंत में सबको.
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