Monday, October 4, 2010

Boat

यादों के समुन्दर में
लहरों  पे सवार होकर
एक किश्ती दूर से
नज़र आती है
जिसमें पता हूँ
अपने आप को
और
तुमको
फिर
उस किश्ती में
बुने जाते हैं
कुछ सपने
कहे सुने जाते हैं
शिकवे , गिले
और
फिर
किश्ती सफ़र तय करती है
बढ़ती रहती है
वक़्त हाथों से रेत की तरह
फिसलने लगता है
किश्ती को समुन्दर में
फ़िक्र ही नहीं
की
जाना कहाँ है
क्योंकि
उसे भरोसा है
वो भटकेगी नहीं
कहीं न कहीं
किनारा मिलेगा उसे
फिर
तेज़ आंधी आती है
और
किश्ती
ओझल हो जाती है
चली जाती है
नज़रों से दूर
में कहीं दूर भटकता रहता हूँ
अकेला
यादों के समुन्दर में
पर
उम्मीद है मुझे
मिलेगा एक दिन
किनारा
उस किश्ती को भी
जिसे तलाश है
सदियों से
उसकी.
         

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