Friday, June 10, 2011

aansoo

यूंही कभी तेरी याद आ जाती है हौले से 
आँखों से बरस जाते हैं आंसू 
कोई पूछता है तो कह देते हैं 
काजल पोंछते हुए दुपट्टा दगा दे गया .

मैंने बहुत ढूंडा तुमको अपने आसपास 
जब तुम न आये तो में क्या करती 
किसको में बताती,क्या में बताती ?
बिन बताये सब बयान कर गए आंसू 

बाजारों की रौनक मुझको फीकी लगने लगी 
गजरे की महक भी अब तो मुझको डसने लगी 
जब आयने में देखा मैंने अपना चेहरा सहम कर 
आयने की आँख से बरस पड़े आंसू 

यूं तो सब कुछ है जिंदगी में और कुछ भी नहीं 
तू भी होता तो कुछ और बात होती 
तेरे कंधे पर सर रख के दिन निकलता शाम होती 
रात को करवट बदलते हुए यूं तनहाई में 
तकिये से न लिपटते ये आंसू 

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