कोई मर्म इस ह्रदय पर यूहीं नहीं है जन्म लेता
इस समर की वेदी पर आहुति होती है वेदना
अश्रु जल ही सींचता है इस प्रेम के अंकुर को सदैव
तब कहीं जा कर पुष्प बनता है सुगंध की प्रेरणा
और सुगंध ही तो है जीवन की सुन्दर वल्लिका
स्वप्न की निर्झर बयार है तो जीवन है, सृजन है
रति है तो प्रेम है , मिलन है , विरह की अगन है
एक पुरुरवा को उसकी उर्वशी का चिंतन है
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