Sunday, September 20, 2020

Uravashi

कोई मर्म इस ह्रदय  पर यूहीं नहीं है जन्म लेता

इस  समर की वेदी पर आहुति होती है वेदना 

अश्रु जल ही सींचता  है इस प्रेम के अंकुर को सदैव 

तब कहीं जा कर पुष्प बनता है सुगंध की प्रेरणा 

और सुगंध ही तो है जीवन  की सुन्दर वल्लिका 

स्वप्न की निर्झर बयार है तो जीवन है, सृजन है 

रति है तो प्रेम है , मिलन है , विरह की अगन है 

एक  पुरुरवा को उसकी उर्वशी का चिंतन है 



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