Thursday, December 23, 2010

lava

शब्दों के ढेर में
दब नहीं सकती
शब्दों की कहानी
उफान लाता है
जब
लावा एहसासों का
और अधखिले सपनों का
तो निकल पढ़ता है
वो
ढेर से शब्दों के
ठंडा होता है वो
गिरता है जब कोई
आंसू उस पर
तब जन्म लेती है
कोई कविता
जो शब्दों का सहारा ढूँढती है
फिर भी
अनकही रह जाती है.    

Thursday, December 16, 2010

viraam

 मेरी आँखों के सावन में
आज भी
एक चेहरा जवान है
उम्र के सफ़र में मेरा माजी
आज भी मुझपर मेहरबान है
मेरी कहानी के सब किरदार
मेरे साथ मेरे साथ चलते रहे
कुछ रुके कुछ बिछुड़े कुछ ठहर गए
पर वो
आज भी बड़ी न हो सकी
मेरी यादों के बगिया में
न खिल सकी
न मिल सकी
ये जीवन है  एक अंतहीन इंतज़ार
इंतज़ार
उस  को बड़े होते देखने का
उसके बाद ही मिल पायेगा
विराम ............

Monday, December 13, 2010

tum

तुम जो अचानक
चले गए यूंही
बिन बताये
में देखती रही
तुम्हारी राह एक टक दरवाजे पर
कभी लगा तुम ने दस्तक दी
कुण्डी खोली तो
अंतहीन ख़ामोशी खड़ी थी
मेरी ख़ामोशी की चीख से
में सहम गयी थी
मैंने कभी न सोचा था
की आएने में
ख़ामोशी ढूंढ लेगी अपना चेहरा
तुम्हारे क़दमों के निशाँ
बता रहे हैं
की तुम को
एक दिन ढूंढ लेगी
मेरी ख़ामोशी

 

 
  

Wazood

 लोगों  की इस भीड़ में खोया सा रहता हूँ  फिर भी में अक्सर तनहा तनहा रहता हूँ  दुनियादारी क्या चीज़ है मुझे समझ नहीं आती  मेरी ये आवारगी मुझ को...