Thursday, December 16, 2010

viraam

 मेरी आँखों के सावन में
आज भी
एक चेहरा जवान है
उम्र के सफ़र में मेरा माजी
आज भी मुझपर मेहरबान है
मेरी कहानी के सब किरदार
मेरे साथ मेरे साथ चलते रहे
कुछ रुके कुछ बिछुड़े कुछ ठहर गए
पर वो
आज भी बड़ी न हो सकी
मेरी यादों के बगिया में
न खिल सकी
न मिल सकी
ये जीवन है  एक अंतहीन इंतज़ार
इंतज़ार
उस  को बड़े होते देखने का
उसके बाद ही मिल पायेगा
विराम ............

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