Thursday, December 23, 2010

lava

शब्दों के ढेर में
दब नहीं सकती
शब्दों की कहानी
उफान लाता है
जब
लावा एहसासों का
और अधखिले सपनों का
तो निकल पढ़ता है
वो
ढेर से शब्दों के
ठंडा होता है वो
गिरता है जब कोई
आंसू उस पर
तब जन्म लेती है
कोई कविता
जो शब्दों का सहारा ढूँढती है
फिर भी
अनकही रह जाती है.    

No comments:

Post a Comment

Wazood

 लोगों  की इस भीड़ में खोया सा रहता हूँ  फिर भी में अक्सर तनहा तनहा रहता हूँ  दुनियादारी क्या चीज़ है मुझे समझ नहीं आती  मेरी ये आवारगी मुझ को...