Monday, May 23, 2011

kitab

किताब के पन्ने 
यूंही पलटते जाता हूँ 
कुछ ढूँढने की चाहत में 
कुछ ढूंढता रह जाता हूँ 

कुछ खो गया है शायद 
किसी सफे पर कहीं
किसी किताब में 

कुछ नादान सा 
कुछ अनजान सा 
कुछ लिखा हुआ 
कुछ मिटा हुआ 
कुछ कहा हुआ 
कुछ अनकहा सा 

किताबें बदलती रहीं 
नहीं बदली मेरी चाहत 
उस सफे को ढूँढने की 
जिस पर लिखा हो कोई 
जाना पहचाना अफसाना 

No comments:

Post a Comment

Wazood

 लोगों  की इस भीड़ में खोया सा रहता हूँ  फिर भी में अक्सर तनहा तनहा रहता हूँ  दुनियादारी क्या चीज़ है मुझे समझ नहीं आती  मेरी ये आवारगी मुझ को...