Wednesday, September 29, 2010

upvan

मेरी चेतना
की मरुस्थली में
एक बीज छुपा हुआ था
उसे मिली
नमी
द्रगजल की
तो फूट उठा उसमें
अंकुर
संवेदनाओं का
अंकुर
बनेगा पौधा
फिर वृक्ष
वृक्ष जनम देगा फिर
नए बीज को
फिर
फूटेंगे नए अंकुर
मेरी चेतना
की मरुस्थली
बन जाएगी
एक
सुन्दर उपवन

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