Wednesday, September 29, 2010

shadow

रात के अंधियारे सी
छाया
पीछा करती है
हरदम क्यों मेरा ?
छाया
बदलती रहती है
हरदम आकृतियाँ
क्रोंधती रहती है
चेतना में हरदम .
छाया
मिलती नहीं है
किसी को
पर लुभाती है
सभी को
छाया
उजाले और अँधेरे
के मिलन से
लेती है जन्म .
छाया
अद्रश्य भी है
और
दृष्टी भ्रम भी
छाया
भय भी है
प्रेम भी है
वासना भी है
वात्सल्य भी है
विरह भी है
आराधना भी है .
छाया
रहस्य भी है
ज्ञान भी है
जड़ भी है
और चेतन भी .
छाया
न तुम्हें खो सकता हूँ
न तुम्हें पा सकता हूँ .
छाया
में तुम्हारा
उपासक हूँ
तुम्हें एक बार ------
मन की आखों
से निहारना चाहता हूँ .

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