Saturday, September 25, 2010

waqt be waqt

तेरी हंसी कभी कभी
यादों के झुरमुट से
ताक झांक करती है
वक़्त वे वक़्त
उम्र गुज़र गयी पर
यादों के झुरमुट में
अब भी सावन लहराता है
और
भिगो जाता है
वक़्त वे वक़्त
वो वगवान
जिस के एक दरक्खत पर
कभी कोयल की
कुहू कुहू सुनायी देती थी
आज उस दरक्खत पर
पतझर   है
पर एक   साया
आज भी नज़र आता है
वक़्त वे वक़्त
 
 

 
 
   
     

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